‘शादी के पहले किसके साथ सोई थी, महीना कब आया था तेरा? क्या कहा, महीने से है, झूठ बोल रही है साली, चल कपड़ा दिखा।’ मंत्रवेदी और अग्नि फेरों के चंद पल पहले के सवाल-जवाब।
151 लड़कियों में शामिल गूंजा शादी के ठीक छह दिन बाद हत्या के अपराधी का बोध लिए यह संवाद यूं सुना रही थी मानो उस दिन अग्नि परीक्षा से गुजर गई लेकिन अब न जाने क्या हो? अब उसे न सिर्फ पति के साथ गुजारी तीन रातों पर पछतावा है बल्कि जांच में फंसने का डर भी सता रहा है।
गांव में ऐसे तो कोई नहीं आता, लगता है शादी में पांच हजार रुपए के सामान देने के बाद बड़ी सी सफेद गाड़ी वाली मैडम फिर जांच करने आई हैं। अब कहां से लाउंगी कौमार्य है? इस उलझन में फंसी गूंजा बार बार एक ही बात दोहराने में लगी थी, कि शादी के पहले मेरे पेट में बच्चा नहीं था।
ब्यौहारी की किरण अपनी सास और ननंद के सामने खुलकर नहीं बता पा रही है कि फेरे लेने के कुछ देर पहले उसे किस तरह से जांचा गया कि कहीं उसके पेट में गर्भ तो

कुछ और पूछताछ करने पर पता चला कि शादी के पहले यह परीक्षण कार्यक्रम कुछ स्थानीय अफसरों के दिमाग की कारिस्तानी थी। जो शादी में
वर वधु की आयु जांच करने वाली डॉक्टर से चिल्लाकर कह रहे थे ‘मैडम देखना कोई बाई पेट से तो नहीं है। पहले ही पता लगा लो नहीं तो मंडप में ही बच्चा जन देगी। साले पहले से साथ में रहने के बाद भी सामान के लिए यहां आ जाते हैं।’ .... जारी है ....
ये घटना विवाह करने के लिए आई हुई उन युवतियों के लिए निश्चित ही बेहद अपमानजनक और अन्यायपूर्ण थी. सामूहिक विवाह में शामिल होने आई युवतियों का इस तरह का परीक्षण करने का अधिकार किसी भी सरकारी एजेन्सी को नहीं दिया जा सकता. ये प्रत्यक्ष रूप से उनके सम्मान और चरित्र पर कीचड उछालने जैसा था. ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना एक और असंवेदनशील व्यवहार का मामला है जो इस राज्य को दलित अधिकारों के हनन के मामले में देश का तीसरे नंबर का राज्य बनाती है. मेरी पूरी प्रतिक्रिया के लिए यहाँ आइये _ कौमार्य परीक्षण...फिर कन्यादान, वाह रे वाह शिवराज महान
ReplyDeletehttp://vijayvermaindore.blogspot.com/2009/10/blog-post_06.html
kaha hai tu ? itane din se kuch likha kyun nahi. Is kahani ko aage to badhao... I am waiting yaar...
ReplyDeleteअब कहां से लाउंगी कौमार्य---आपने बहुत अच्छा लिखा है, इसके आगे भी आवाज उठाने की जरूरत है। सच मानिये तो आगे की पांच लाइनों को पढकर मेरे आंख में आंसू आ गए। घटना को आपने जिस अंदाज में पिरोया है, काबिले तरीफ है। इस तरह की हरकतो को अंजाम देने वालों के खिलाफ जंग जारी रखिये, हम आपके साथ हैं।
ReplyDeleteसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद।
09953090154
अब कहां से लाउंगी कौमार्य है?-------------आपने इतना जबरदस्त अंदाज में सरकार और समाज के ठेकेदारों की बखिया उधेडी है, बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही कलम के जरिये संघर्ष करते रहिए। कहते हैं कि बंदूक से ताकतवर होती है कलम। कई बार कुछ चीजों को अखबार में उतार तो नहीं सकते लेकिन उसे ब्लाग के माध्यम से दुनिया के सामने सच्चाई रखी जा सकती है। इसलिए आपका सैकडो अबलाओं की आवाज उठाना काबिले तारीफ है। आगे की तीन लाइनों को पढकर मेरी आंखों में आंसू आ गया। इस घटना से मै एक इंसान के नाते बहुत दुखी हैं, इसलिए आप इसे अनवरत जारी रखें।
ReplyDeleteसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद।
09953090154
आपने जो पहली स्टोरी अपने अखबार में लिखी थी, वह भी ब्लॉग पर पोस्ट कर दीजिए। आपने अच्छी स्टोरी ब्रेक की थी जो आपके सपनों, आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं, बहादुरी, समझदारी, निष्ठा और अन्याय को बदलने की कसमसाती चाहत का सुंदर दस्तावेज थी। उस पर कामयाब होती तंत्र की लीपापोती ही मुझे लगता है आपको ब्लॉग की दुनिया में ले आई। आपके एक-एक शब्द में चिंगारियां हैं। उन्हे बुझने मत दीजिए, इसकी बजाय अंगारों में बदलिए। आपको मेरी उतनी ही शुभकामनाएं जितने आपकी आंखों की गहराई में सपने अंगड़ाई ले रहे हैं।
ReplyDeleteसमाज और व्यवस्था पर गहरी चोट बहुत अच्छी रचना है दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteशर्मनाक लानत इन अधिकारियों पर,अच्छी बखिया,उधेड़ी,बाकि आपको दिवाली की बहुत,बहुत शुभकामनायें ।
ReplyDeleteभूमिका तुम्हारे लिये बाल स्वरूप राही का एक गीत भेंट कर रहा हूं
ReplyDeleteपी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं !
तूने स्वाभीमान से जीना चाहा यही ग़लत था
कहाँ पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था
केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है
सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है
तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था
तूने कोई समझौता स्वीकारा भी तो नहीं !
ग़लत परिस्थिति ग़लत समय में ग़लत देश में होकर
क्या कर लेगा तू अपने हाथों में कील चुभोकर
तू क्यों टँगे क्रॉस पर तू क्या कोई पैग़म्बर है
क्या तेरे ही पास अबूझे प्रश्नों का उत्तर है?
कैसे तू रहनुमा बनेगा इन पाग़ल भीड़ों का
तेरे पास लुभाने वाला नारा भी तो नहीं ।
यह तो प्रथा पुरातन दुनिया प्रतिभा से डरती है
सत्ता केवल सरल व्यक्ति का ही चुनाव करती है
चाहे लाख बार सिर पटको दर्द नहीं कम होगा
नहीं आज ही, कल भी जीने का यह ही क्रम होगा
माथे से हर शिकन पोंछ दे, आँखों से हर आँसू
पूरी बाज़ी देख अभी तू हारा भी तो नहीं
लोकतंत्र (वो भी भारत जैसा लोकतंत्र हो तो वाह!) में सबसे आसन काम है सरकारी कार्यों में मीन मेख निकालना.
ReplyDeleteउनके बारे में अख़बारों में झूठी /मनगढ़ंत बातें लिखना.
किसी भी सरकारी योजना से आर्थिक लाभ उठाने के लिए भारत का हर वर्ग तैयार रहता है, वो चाहे अपने को सबसे ज्यादा ईमानदार जतलाने वाले पत्रकार हों, या तथाकथित दलित/गरीब वर्ग.
जैसा की मध्य प्रदेश में शासन द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में हुए कथित कोमार्य परिक्षण की बात हैं मुझे लगता है , आपको सही जानकारी नहीं है.
इस आयोजन में शामिल हो विवाह कराने पर शासन द्वारा कुछ आर्थिक सहायता एव आवश्यक सामान के लालच में ऐसे भी बहुत से लोगों ने पंजीयन करा रखा था जो पूर्व से ही विवाहित थे अपितु जिनके कई बच्चे भी हो चुके थे.
मीडिया में इस प्रकार की कई रिपोर्ट आने के बाद शासन ने कुछ कदम उठाये. प्रत्येक जोड़े की जांच की गयी ,आपको बता दूं, शहडोल में इस प्रकार के कई लोगों को शासन ने पकड़ा भी ,३ महिलाएं ऐसी थी जो गर्भ से थी. कई पूर्व विवाहित लोगों की भी पहचान की गयी और आयोजन में शामिल होने से उनको रोका गया.
ऐसी ही लोगों ने वहां उल्टी सीधी बातें फैलाई गयी, और कुछ पत्रकारों द्वारा इसे सनसनीखेज़ बना कर छापा गया.
आपने जो कहानी बनाई, उसे नेट पर पढ़ कर कई लोगों की आँखों में आंसू भी आ गए ? होंगे.