Sunday, December 12, 2010

पुलिस की दबंगाई ने दिया दर्द

मानव अधिकारों का खुला मजाक बने रतलाम के दंगे

भूमिका कलम, भोपाल
गुजरात में जिस तरह पुलिस पर मुस्लिमों पर अत्याचार करने के आरोप हैं, उसी तरह मप्र पुलिस और राज्य सरकार को रतलाम की मुस्लिम महिलाएं कटघरे में खड़ा कर रही है। उनके आरोप है कि पुलिस ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया और मुस्लिमों पर अत्याचार किए। महिलाओं-बच्चों पर इस कदर ज्यादतियां की गई कि कई घरों में महिला और बच्चियां अपना मानसिक संतुलन खो चुकी हैं।
कथित तौर पर उनके साथ जो अत्याचार हुए, उसकी मानवाधिकार आयोग ने जांच बड़े जोर-शोर के साथ शुरू की थी, लेकिन वह भी ठंडी पड़ गई। जिस प्रशासन पर अत्याचार करने के आरोप लगे, उन्हें हीं जांच सौंप दी गई। यहां तक की यहां तक कि एसपी मयंक जैन पर भी उन्होंने गंभीर आरोप लगाए हैं।
तीन सिंतबर 2010 की रात को शुरू हुए इन दंगों के शिकार लोगों को लंबे समय तक जेल में रखा गया जिसमें ईद मानाने अपने घर पहुचें छात्र और बीमार महिलाएं भी शामिल हैं। मानव अधिकारों की बात तो दूर अभी तक किसी को न्याय नहीं मिला और आज भी पीड़ा दे रही है पुलिस की दंबागाई।
आज भी होती है खून की उल्टियां ...
" मेरी सा को पुलिस ने बाल पकड़कर सड़क पर पटक दिया। जब मैंने रोकने की कोशिश की तो मुझे भी मारा और बोले कि अब तो यहाँ दूसरा गुजरात बना देंगें और ज्यादा बोली तो तेरे आदमी की जगह तेरे साथ बिस्तर पर हम होंगे। उन्होंने मुझे मारा। मुझे खून की उल्टियां हो रही थी और एसपी साहब बाहर खड़े गालियां दे रहे थे कि मारो इन .... को। " रतलाम निवासी रानी-बी चार महीने पहले हुए दंगों को याद करती ही है तो उसकी रूह कांप जाती है। इन अत्याचार के बावजूद मानव अधिकारों की दुहाई देने वालों से कोई न्याय नहीं मिला।
वो बच्चों के शोर से डर जाती है ...
रतलाम के शेरनी पूरा में रहने वाली 18 साल की आफरीन पिता इकराम खान चार महीने बाद भी कुछ बोलने की हालत में नहीं है, बच्चों के खेलने के शोर से भी सहमने वाली आफरीन ने घर के अंधेरे कोने को ही अपना आशियाना बना लिया है। आफरीन की मां ने बताया कि जिस वक़्त ये हादसा हुआ आफरीन सोफे बेठी थी। अचानक घर के शीशे टूटने शुरू हुए...पुलिस के दो लोग घर का दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर घुसे उन्होंने मेरे शौहर और बेटे को बन्दूकों से इतना मारा कि घर में खून के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आ रहा था...हम रो रहे थे और पुलिस मार रही थी।


वो छह दिन भूखे सोए थे हम...
शनिवार के उस दिन याद करके 17 साल की समरोज की आंखे आज भी भीग जाती है। उसके अनुसार गली में आ रही तेज आवाज के कारण हमने दरवाजा नहीं खोला तो पुलिस ने दरवाजा तोड़ा और पापा को घर से घसीटते हुए ले गए। मैंने उनकी मन्नतें की तो मेरा दुप्पटा खींचा और मुझे छुने की कोशिश की। कोई कसूर नहीं होने के बाद भी छह दिनों तक पुलिस ने पापा को हिरासत में रखा। इन दिनों हमारे यहां चूल्हा नहीं जला हम भूखे ही सो सोए थे। इस अत्याचार की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और कोई न्याय नहीं मिला।


दो महीने चंदे पर जी हूं....
"बिना गुना मेरे शौहर को दो महीने जेल में रखा और मुझे इतना पीटा की आज भी पेट में तकलीफ है। दो महीने मैं चंदे पर ही जी हूं क्योंकि कोई सहारा नहीं है हमारा। 43 साल की अख्तर बी इस वाकये को बताते हुए अपने दर्द को हरा कर रही थी। उन्होंने बताया कि घर में घुसकर पुलिस ने मुझे और मेरे शौहर को बेतहाशा पीटा और उसे अपने साथ ले गए। मुझे बेहोशी की हालत में छोड़ बाहर से दरवाजा लगा गए। एक दिन बाद पड़ोसियों ने दरवाजा खोल के बाहर निकाला और अस्पताल में दाखिल करवाया। "

4 comments:

  1. शिवराज के राज मैं यही पुलिसे का असली चेहरा है |
    इस दबंगई को उजागर करने के लिए साधुवाद |

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  2. प्रकरण यह गंभीर दिखता है. पूरी जानकारी के अभाव में निश्चित टिप्पणी नहीं कर सकता हूँ पर जिस प्रकार से आपने महिलाओं का कष्ट प्रस्तुत किया है, वह प्रथम द्रष्टया इस प्रकार का है जिससे मामले के प्रति ध्यान जाता है.
    क्या कुछ और जानकारी दे सकेंगी?

    अमिताभ ठाकुर
    आई आई एम लखनऊ
    94155-34526

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  4. ये खबरें ही पत्रकार को जिंदा रखती हैं। शाबाश।

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