Monday, November 29, 2010

बस नाम की हीरा, मोती और राजकुमारी



पढ़ने की चाह के नाम पर बस आह, पढ़ाई की उम्र में मजदूरी की मजबूरी

शोडलपुर (रायसेन) से लौटकर भूमिका कलम
उसका नाम हीरा है और उसकी सहेली का मोती। उन्हीं की एक सहेली राजकुमारी भी है और चौथी का नाम सुलेखा है। लेकिन सच कहा गया है कि नाम से क्या होता है, हीरा बनना चाहती थी डॉक्टर और मोती की आंखों में टीचर बनने के सपने पल रहे थे। आज दोनों ही मजदूरी कर रही हैं। राजकुमारी और सुलेखा के भी भविष्य के सपने चूर-चूर हो चुके हैं और उनके हिस्से भी मजदूरी का काम ही आया है। दुर्भाग्य देखिए कि इनमें से हर किसी को मजबूरी के चलते स्कूल छोड़ना पड़ा और आगे पढ़ने की इच्छा को मन में दबाए वे दो समय की रोटी की जुगाड़ में परिवार का साथ दे रही हैं। हीरा, मोती, राजकुमारी और सुलेखा जैसी 30 लड़कियों की यही दर्द भरी कहानी है।
शिक्षा का अधिकार, स्कूल चलें हम, सर्व शिक्षा अभियान और लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं वाले मध्यप्रदेश में उक्त झकझोर देने वाली सच्चाई राजधानी से महज 125 किलोमीटर दूर रायसेन जिले के शोडलपुर गांव में देखी जा सकती है। करीब 1800 की आबादी वाले इस गांव के कमोबेश सभी परिवार भयावह गरीबी से जूझ रहे हैं, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे बीपीएल के कार्ड महज 31 परिवारों को मिले हैं। इस गड़बड़ी ने कई युवा सपनों को रौंद दिया है। ज्यादातर परिवारों के सभी सदस्य मजदूरी करने को मजबूर हैं। महज 14 साल की उम्र में आठवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने वाली हीरा कहती है ह्यपिताजी की मौत के बाद घर पर पैसे का ऐसा संकट आया कि स्कूल को भूलना पड़ा।ह्ण पांचवीं कक्षा के बाद मजबूरी में स्कूल से दूरी करने वाली राजकुमारी कुशवाह की अन्य तीन बहनों को भी शिक्षा से दूर होना पड़ा है। उसकी मां आशाबाई कहती हैं कि पहले पीला कार्ड था तो कुछ अनाज मिल जाया करता था, आज कार्ड नहीं रहा। जब खाना ही नहीं मिलेगा तो बच्चियां पढ़कर भला कर भी क्या लेंगी? मोती के भाई टीकाराम की आंख यह बताते हुए भर आई कि आठवीं के बाद पैसे की कमी के चलते उसे अपनी बहन को स्कूल से अलग कर मजदूरी में लगाना पड़ गया। खेतों में मजदूरी कर रही सुलेखा विश्वकर्मा के पिताजी अपाहिज हो गए। घर में पैसा नहीं था इसलिए भाई-बहिन को पढ़ाई छोड़ कर मजदूरी में जुटना पड़ गया है।
हालात ऐसे भी
हमारी पड़ताल बताती है कि गांव के जिन 31 परिवारों को बीपीएल कार्ड दिया गया, उनमें से अधिकांश जमीनों के मालिक हैं और उनके घर पर ट्रेक्टर भी हैं। जबकि मजदूरी कर पेट पाल रहे पात्र परिवारों को यह कार्ड मिला ही नहीं है।
शोडलपुर पंचायत सचिव महेंद्र कुमार गुप्ता सफाई भरे लहजे में कहते हैं गांव में गरीबी रेखा का सर्वे हुआ था, सवाल-जवाब में जो परिवार 14 से अधिक नंबर पा गए उन्हें एपीएल और कम नंबर पाने वालों को बीपीएल कार्ड दिए गए। इस प्रक्रिया में संपन्न परिवारों को भी बीपीएल कार्ड मिल गए। दोबारा सर्वे के लिए कई बार कलेक्टर कार्यालय में अर्जी दी, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही।