Monday, October 26, 2009

हां, तुम जानते थे...


हां, तुम जानते थे...

उन पलों में मेरा खो जाना फिर वहीं ठहर जाना,

इन पावों का थमनाऔर बदन का सिहरना

हां तुम जानते थे ...

इसलिए ले गए उस राह जहां

मैं खोई रही तुममें और भूली खुद को

अनजान बने तकते रहे तुम भी मुझको

हां तुम जानते थे...

मेरा बिखरना और फिर एक हो जाना

पतझड़ में उड़ना और बिन पतवार बहना

तुम जानते थे

तुम्हारे र्स्पश और छुअन याद रहते हैं मुझे

जिसमें दिनों तक बसती रहती हूं मैं

और फिर एक दिन वही खालीपन

हां तुम जानते थे...

यादों की बुनियादों में बसे

हर पल का हिसाब जिंदगी में दे पाई नहीं

पर अब कोई राह नहीं

खो गए हैं रास्ते और तुम भी साथ नहीं

हां, तुम जानते थे...

आएगा एक दिन ऐसा भी

बूंदों से वजूद में ढूंढ रही होंगी मैं तुम्हें

और तुम तब भी दूर बैठे मुझसे

अनजान दुनिया की खबरों में गुम

कई मुस्कराहटों के साथ करोगे

नए पलों की शुरुआत

हां, तुम जानते थे...


Tuesday, October 6, 2009

अब कहां से लाउंगी कौमार्य है?

(घटना)
शादी के पहले किसके साथ सोई थी, महीना कब आया था तेरा? क्या कहा, महीने से है, झूठ बोल रही है साली, चल कपड़ा दिखा।मंत्रवेदी और अग्नि फेरों के चंद पल पहले के सवाल-जवाब।
151 लड़कियों में शामिल गूंजा शादी के ठीक छह दिन बाद हत्या के अपराधी का बोध लिए यह संवाद यूं सुना रही थी मानो उस दिन अग्नि परीक्षा से गुजर गई लेकिन अब जाने क्या हो? अब उसे सिर्फ पति के साथ गुजारी तीन रातों पर पछतावा है बल्कि जांच में फंसने का डर भी सता रहा है।
गांव में ऐसे तो कोई नहीं आता, लगता है शादी में पांच हजार रुपए के सामान देने के बाद बड़ी सी सफेद गाड़ी वाली मैडम फिर जांच करने आई हैं। अब कहां से लाउंगी कौमार्य है? इस उलझन में फंसी गूंजा बार बार एक ही बात दोहराने में लगी थी, कि शादी के पहले मेरे पेट में बच्चा नहीं था।
ब्यौहारी की किरण अपनी सास और ननंद के सामने खुलकर नहीं बता पा रही है कि फेरे लेने के कुछ देर पहले उसे किस तरह से जांचा गया कि कहीं उसके पेट में गर्भ तो नहीं है। अकेले में बात करने पर उसने बताया किडॉक्टर ने पहले तो पेट दबाया फिर साड़ी पोटीकोट हटाकर योनी की जांच (प्रीवेजानाइनल टेस्ट) की। पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद ही शादी का जोड़ा दिया गया।शादी के अरमान संजोए 30 जून को शहडोल पहुंची हर लड़की ने गूंजा और किरण द्वारा कही बातों को ही दोहराया।
कुछ और पूछताछ करने पर पता चला कि शादी के पहले यह परीक्षण कार्यक्रम कुछ स्थानीय अफसरों के दिमाग की कारिस्तानी थी। जो शादी में
वर वधु की आयु जांच करने वाली डॉक्टर से चिल्लाकर कह रहे थेमैडम देखना कोई बाई पेट से तो नहीं है। पहले ही पता लगा लो नहीं तो मंडप में ही बच्चा जन देगी। साले पहले से साथ में रहने के बाद भी सामान के लिए यहां जाते हैं।’ .... जारी है ....

Monday, October 5, 2009

मुर्गों के नीचे दब गई औरत की अस्मीता

(जांच)
प्रदेश के मुख्यमंत्री जिस कन्यादान में लड़कियों के भाई और मामा की भूमिका निभा रहे हैं उसमें ही दान देने के पहले बहन और भानजियों को नंगा करने पर वबाल सा मच गया। कलेक्टर शहडोल भी जोश में संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की बात भी कह गए। मीडिया में सारी बातों का खुलासा होते ही राजनीति दलों में खींचतान मची। एक हफ्ते बाद राज्य और राष्ट्रीय महिला आयोग की नींद से जागा। महिलाओं के साथ हुए अन्याय के लिए लड़ने को संगठनों ने भी कमर कसी। महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ करने का मुद्दा दोनों सदनों में हंगामा मचाने के लिए काफी हो गया।
दिल्ली से राष्ट्रीय महिला आयोग की तीन सदस्य (आदिवासी इलाके से सिर्फ अंग्रेजी बोलने और समझने वाली दो महिलाएं उनके साथ भोपाल की एक स्थानीय नेता) शहडोल पहुंची। दिनभर सरकारी आवभगत स्वीकारने के बाद शाम को कलेक्टर और एसपी से मामले की पूछताछ की गई। अगले दिन से गांव का दौरा। फिर एक बार महिलाओं ने उस शर्मनाक स्थिति का वर्णन किया। सारी बातें सुन इसी जांच दल ने मीडिया में खुलासा किया कि महिलाओं के बड़ा साथ अन्याय हुआ। दिल्ली से भेजी जाने वाली रिपोर्ट में मप्र सरकार से जवाब मांगने के साथ दोषियों पर कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा।
आठ दिनों बाद दिल्ली में एक केंद्रीय मंत्री (महिला)ने रिपोर्ट का खुलासा करते हुए बताया कि शहडोल में कौमार्य परीक्षण जैसा कुछ नहीं हुआ है। महिलाओं का जो परीक्षण हुआ उसमें कुछ भी गलत नहीं है।
सरकार अब कटघरे से बाहर थी और इस दोषमुक्त होने के लिए चुकाई गई कीमत थी 18 हजार रुपए के मुर्गे जो राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम की खातीरदारी में शहीद हुए। लगभग एक महीने बाद किसी अन्य जांच की बात करते हुए पुलिस प्रशासन के आला अफसर ने अनऔपचारिक बातचीत में जांच की सच्चाई का खुलासा करते हुए कहा कि औरतों से निपटना कौन सी बड़ी बात है, 17 हजार रुपए के मुर्गे खाएंगी और हमारी चाही रिपोर्ट बनाएंगी।
यह सुनने के बाद तो मेरा महिलाओं और उनकी न्याय क्षमता से ही विश्वास उठ गया। इसके बाद मेरा यह सोच की इतनी जांच करना और महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अन्याय पर हंगामा मचाने से यह भला नहीं है कि इसे स्वीकार कर लिया जाए क्योंकि महिलाएं भी ऐसा ही चाहती हैं।

Friday, October 2, 2009

मेरे कुछ दोस्तों का कहना है की मै दुसरे पाले में खड़ी हूँ और इस पोस्ट के बाद मेरी स्टोरी 'पहले गर्भ परिक्षण फ़िर कन्यादान' भी ग़लत साबित हो रही है। इस बारे में मै इतना ही कहना चाहती हूँ की राष्ट्रीय महिला आयोग द्बारा की गई जांच की रिपोर्ट का सच सामने आने के बाद इस देश की हर महिला को ऐसा ही लगेगा।
रिपोर्ट की सच्चाई अगली पोस्ट में लिख रही हूँ।

हां क्यों न जरूरी कर दें गर्भ परीक्षण

दो महीने पहले बंद हुई बहस को एक बार फिर छेड़ने का मन हुआ। रिपोर्टिंग के बाद भी कई अनछुए पहलू हैं जिनकी चर्चा तो की ही जा सकती है। पूरे मसले के बाद अब मुझे ऐसा लग रहा है कि सरकारी योजना हो या न हो शादी के पहले कौमार्य परीक्षण या गर्भ परीक्षण जरूरी ही कर देना चाहिए। हां मेरे ऐसा कहने और लिखने से महिला संगठन और महिलाओं को बहुत बुरा लगेगा। लेकिन किसी व्यंग के चलते मैं ऐसी बात मजाक में नहीं कर रही हूं मेरा मतलब इस पूरे मसले को गंभीरता से लेना का है, अलबत्ता शादी रस्म की अदायगी में ही परीक्षण को शामिल किए जाने का है। सच मानिए यह रूढ़ीवादी सोच नहीं या पुरूषों की तरफदारी वाली बात भी नहीं है। शहडोल से भोपाल और दिल्ली की रिपोर्ट के अनुभव से कह रही हूं। शहडोल में हुआ कुछ गलत या सही के दायरे से बहुत दूर था। महिलाओं को एक लाइन में खड़े कर शादी के ठीक पहले यह जांचना की वे किसी शारीरिक संबंध से गुजर कर गर्भवति तो नहीं हो गई हैं। इसे अब मैं गलत नहीं मानती क्योंकि पूरे देश में मचे हंगामे के बाद कुछ भारतीय महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए चुनी गई विशिष्ट महिलाओं ने जांच की है। जिसमें पाया गया कि महिलाओं के साथ कुछ गलत नहीं हुआ था। हांलाकि जांच के कई पहलू दिल्ली नहीं पहुंचे । शहडोल में यह बात लगभग सभी की जानकारी में रही। क्या और कैसे हो गया अचानक सभी कुछ ठीक। हां तब तक मीडिया के लिए मामला पुराना हो गया था इसलिए अब नहीं लिख सकते, या कितना लिखें, अरे जांच तो आ ही गई ना जैसे कई वाक्य मैनें खुद कहे और सुने हैं। अब महिलाओं के गर्भपरीक्षण ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा इसकी बात करते हैं। क्या किसी मर्द के लिए शादी के ठीक पहले यह प्रमाणीकृत कर लेना गौरव कि बात नहीं होगी कि उसकी पत्नी का कौमार्य बरकरार है। ठीक ऐसे ही बेटी और बहन की बात करें तो भी कोई परेशानी नहीं है। कम से कम पिता और भाई भी अपने रक्षा कर्त्वय बोध से भरे रहेंगे। परीक्षण की अनिवार्यता होने पर किसी और की बेटी, बहन या होने वाली पत्नी के बारे में बात करने से पहले यह अहसास हर मर्द को रहेगा कि खुद के घर की लड़की का परीक्षण कराने पर न जाने क्या परिणाम निकले। इस स्टोरी को करते वक्त इलेक्ट्रानिक मीडिया के साथी ने कहा कि योजना का लाभ देने के लिए किसी महिला को जांच कर ली तो क्या बुरा हुआ प्रशासन के पास कोई रास्ता ही नहीं है। मप्र शासन के एक मंत्री का बयान भी कुछ इसी प्रकार था कि कौमार्य परीक्षण कर भी लिया तो क्या हुआ। इनके बयानों से यह तो समझ आ ही रहा है कि वे इतनी ही सादगी से अपने घरों में भी इस तरह के परीक्षण के लिए तैयार हैं।

Thursday, October 1, 2009

आज एक रिपोर्टर की भूमिका से बाहर निकलकर लिखने की सोची और बना डाला एक और हिन्दी ब्लॉग । वैसे पढ़ना और लिखना शौक तो है लेकिन कुछ हिन्दी ब्लाग पर पढ़े कमेंट के बाद तो काफी दिन ब्लाग बनाने का मन ही नहीं हुआ। आखिर मैं करती भी क्या ? इस भूमिका से उकता रही थी। कई बार आंखों देखी लिखने के पहले ही कलम सोच के दायरे में आ जाती है अब उसे तोड़ लिखने का मन बना लिया है

आसमान है ...

सूर्य के उदय होने की लालिमा
एक नया रंग देती है उस निलय को
एक तारा जो अपना अस्तित्व बताता है
कि मैं हूं वो भी खो जाता है कुछ ही पलों में ।
कई छोर होंगे उस आसमान के,
पर जब देखो एक सा नजर आता है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक रंगो से भरी उसकी दुनिया
रात जिसे काला करती है और तारे आकर फिर चमका जाते हैं।
मौसम आते हैं जाते हैं पर वो ठहरा है
अपने सभी रंग लिए प्रकृति जिसमें सिमट सकती है
पर वो आजाद करता है सभी को
उंचाई में उसका कोई छोर नहीं
लगता है उसका अपना कोई और नहीं
सभी को अपना बना रखा है उसने
क्योंकि वो आसमान है।
कहते हैं खुदा और भगवान उसी में बसते हैं,
फिर भी कोई अभिमान नहीं
वही अपनापन, हमसे दूर कहीं झुकता नजर आता है।
उसके पास है आगे बढ़ने की प्रेरणा
उंचाई के नए मापदंण, व्यक्तित्व में खुलापन
और हर किसी के लिए क्षमाधन
फिर सोचो वो इतराए तो कैसा होगा
दुनिया के अस्तित्व को ही खतरा होगा।
पर वो ऐसा नहीं है वो सहज है,
सरल है वृहद है,
पर अभिमानी नहीं
फिर हम क्यों करते हैं मान
अपने धन प्रतिष्ठा या स्वाभिमान पर
अपने कर्मों पर
जो वो नहीं करता मान
जो आसमान है...